Difference Between Halal And Jhatka What Effect Do Both Have On Health


Halal and Jhatka: मीट की बात करें तो शायद आपने झटका और हलाल शब्द सुने होंगे. शायद यह सोचने को मिला होगा कि एक ही जानवर का मीट इन दोनों तरीकों से कैसे अलग हो सकता है? आए दिन इन दोनों शब्दों को लेकर लोगों में बहस छिड़ जाती है. हर कोई अपने हिसाब से किसी एक को सही और गलत बता देता है. ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि हलाल और झटका मीट में क्या फर्क होता है?

हलाल और झटका में क्या है अंतर

झटका मीट का तरीका होता है जिसमें एक ही झटके में जानवर को मारा जाता है. यह माना जाता है कि इस प्रक्रिया में जानवर को कम दर्द होता है, क्योंकि वह एक ही झटके में मर जाता है. हलाल मीट में भी जानवर को मारने से पहले उसकी नसों और सांस लेने वाली नली को काटा जाता है, ताकि जानवर का सारा खून बाहर निकल जाए. इससे जानवर की गोश्त से बीमारी खत्म हो जाती है. इस तरह, इस्लाम में मान्यता है कि हलाल मीट को खाने से जानवर की गोश्त से बीमारी नहीं फैलती.

हेल्थ को लेकर क्या कहता है साइंस

झटका मांस के खिलाफ आवाज उठाई जाने वाली पहली चिंता स्वास्थ्य पर इसके कथित प्रभाव के इर्द-गिर्द घूमती है. लेकिन क्यों? समस्या बल्ड क्लॉटिंग की प्रक्रिया में है. जब किसी जानवर को एक ही वार से तेजी से मारा जाता है, तो बल्ड क्लॉटिंग की प्रक्रिया तुरंत शुरू हो जाती है. इससे चोट के स्थान पर ब्लड के थक्के बनने लगते हैं, जो पूरे जानवर के शरीर तक फैल जाते हैं. लिहाजा, जानवर से खून पूरी तरह से नहीं निकल पाता है और मांस के हिस्सों में ही जमना शुरू हो जाता है, जिससे मांस सख्त हो जाता है, और अतिरिक्त ब्लड के कारण, यह लंबे समय तक अपनी गुणवत्ता बनाए नहीं रख पाता है, यानी कि यह जल्दी खराब हो जाता है.

बता दें कि बल्ड क्लॉटिंग एक ऐसी प्रक्रिया है, जो चोट लगने पर शरीर से अत्यधिक ब्लड हानि को रोकने के लिए ट्रिगर होता है. मुख्य रूप से जब किसी जीवित प्राणी को कोई घाव हो जाता है और बल्ड क्लॉटिंग शुरू हो जाती है, तो बल्ड के भीतर मौजूद प्लेटलेट्स और प्लाज्मा मिलकर खून को जमा देते हैं, इस प्रक्रिया को बल्ड क्लॉटिंग कहा जाता है.

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